1.गुर्दा प्रत्यारोपण क्या हैं :::
kidney
गुर्दा प्रत्यारोपण एक शल्य चिकित्सा पद्धति हैं जिसके द्वारा जीवित या मृत व्यक्ति से कार्यशील गुर्दा (किडनी),निकालकर ऐसे व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया जाता हैं। जिसके गुर्दे कार्य नहीं कर रहें हैं।
प्रथम गुर्दा प्रत्यारोपण सन 1933 में सोवियत यूनियन के युरिव योरोनिव द्वारा किया गया था किन्तु यह प्रत्यारोपण असफल हो गया था। जबकि प्रथम सफल गुर्दा प्रत्यारोपण का श्रेय एक अमेरिकन डॉ.रिचर्ड लानर को जाता हैं ।
जीवित मनुष्य के शरीर से किडनी प्रत्यारोपण के सफल प्रयास का श्रेय ब्रिटिश चिकित्सक माइकल वुडरफ को जाता हैं,जिन्होंने 30 अक्टूबर 1960 को यह कार्य किया था ।
प्रथम गुर्दा प्रत्यारोपण सन 1933 में सोवियत यूनियन के युरिव योरोनिव द्वारा किया गया था किन्तु यह प्रत्यारोपण असफल हो गया था। जबकि प्रथम सफल गुर्दा प्रत्यारोपण का श्रेय एक अमेरिकन डॉ.रिचर्ड लानर को जाता हैं ।
जीवित मनुष्य के शरीर से किडनी प्रत्यारोपण के सफल प्रयास का श्रेय ब्रिटिश चिकित्सक माइकल वुडरफ को जाता हैं,जिन्होंने 30 अक्टूबर 1960 को यह कार्य किया था ।
2.गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता :::
गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता गुर्दे के अंतिम चरण वाले मरीजों को होती हैं जिनके गुर्दों ने बिल्कुल ही काम करना बंद कर दिया हैं।
3.कोंन गुर्दा दान कर सकता हैं :::
जीवित व्यक्ति ,रिश्तेदार ,परोपकारी गैर रिश्तेदार,मृतक व्यक्ति,विस्तारित मापदंड वाला व्यक्ति।
4.गुर्दा देनें वाला जीवित :::
गुर्दा देने वाले मृत दानदाता की सीमित उपलब्धता के कारण अधिकांशत : जीवित दानदाता से गुर्दा प्राप्त करने का प्रयास किया जाता हैं ।ऐसा इसलिये क्योंकि किसी व्यक्ति द्वारा दोनों गुर्दों में से एक गुर्दा दान कर देने पर भी एक गुर्दे के साथ लम्बा और स्वस्थ जीवन व्यतीत किया जा सकता हैं ।
गुर्दा दानदाता जीवित व्यक्ति की निगरानी सावधानीपूर्वक की जाती हैं और निरंतर उसके रक्तचाप,गुर्दे की कार्यप्रणाली का मुल्यांकन किया जाता हैं । इसके लिये निम्न मापदंड निर्धारित किये गये हैं ::-
1.न्यूनतम आयु 18 वर्ष।
2.दोनों गुर्दे सामान्य रूप से कार्यशील होने चाहिये।
3.संक्रमण नही होना चाहिये।
4.कैंसर का कोई इतिहास नहीं होना चाहियें।
5.उच्च रक्तचाप से ग्रसित नही होना चाहिये।
6.शराब या अन्य नशीली दवाइयों का सेवन करने वाला नही होना चाहिये।
7.मानसिक और शारीरिक स्वास्थ चिकित्सकीय मापदंड़ो के अनुकूल होना चाहिये ।
4.कैंसर का कोई इतिहास नहीं होना चाहियें।
5.उच्च रक्तचाप से ग्रसित नही होना चाहिये।
6.शराब या अन्य नशीली दवाइयों का सेवन करने वाला नही होना चाहिये।
7.मानसिक और शारीरिक स्वास्थ चिकित्सकीय मापदंड़ो के अनुकूल होना चाहिये ।
5.जीवित व्यक्तियों से गुर्दा प्राप्त करनें के लाभ :::
1.सफलता की उच्च दर ।
2.अधिक समय तक प्रतीक्षा करने से मुक्ति ।
3.प्रत्यारोपण के लिये बेहतर गुर्दे की उपलब्धता ।
6.प्रत्यारोपण के प्राप्तकर्ता के कारक :::
1.यदि गुर्दा देने वाले व्यक्ति के असंगत होने की स्थिति आती हैं तो गुर्दा देने वाले ऐसे व्यक्ति का विचार किया जाता हैं जो अन्य गुर्दा प्राप्तकर्ता से असंगत हो । विनिमय की इस प्रक्रिया में दोनों गुर्दा प्राप्तकर्ता अपने लिये संगत गुर्दा प्राप्त कर उत्तम गुर्दा प्रत्यारोपण को सफल बनाते हैं ।
7.मृत व्यक्ति से गुर्दा प्राप्त करना :::
जब गुर्दा देनें वाला व्यक्ति मृतक हैं तो उसके परिवार की पूर्ण सहमति प्राप्त कर गुर्दा निकाला जाता हैं । मृतक व्यक्ति के गुर्दे का परीक्षण रसायनों द्वारा कर उसे प्रत्यारोपण के लिये उपयुक्त या अनुपयुक्त माना जाता हैं । उपयुक्त पाये जाने पर गुर्दे को बर्फ और पोषक तत्वों से युक्त घोल में रखकर संरक्षित किया जाता हैं ।
गुर्दा निकालने के 36 घंटे के अंदर प्रत्यारोपित करना आवश्यक होता हैं ।यह समय और भी कम हो तो बहुत अच्छा माना जाता हैं क्योंकि यदि गुर्दा लम्बें समय तक बाहर रहेगा तो प्राप्तकर्ता शरीर गुर्दे को अनुकूलित करने में अधिक समय लगाएगा ।
गुर्दा निकालने के 36 घंटे के अंदर प्रत्यारोपित करना आवश्यक होता हैं ।यह समय और भी कम हो तो बहुत अच्छा माना जाता हैं क्योंकि यदि गुर्दा लम्बें समय तक बाहर रहेगा तो प्राप्तकर्ता शरीर गुर्दे को अनुकूलित करने में अधिक समय लगाएगा ।
8.गुर्दा प्रत्यारोपण के लाभ :::
1.डायलिसिस की आवश्यकता को समाप्त करता हैं ।
2.जीवन की गुणवत्ता को बेहतर करता हैं ।
3.गुर्दे की खराबी वाले मरीजों का उत्तम समाधान प्रस्तुत करता हैं ।
4.प्रत्यारोपण के बाद तरल पदार्थों के सेवन पर कम प्रतिबन्ध ।
9.गुर्दा प्रत्यारोपण के बाद की सावधानी :::
1.मरीज को तब तक चिकित्सकों की निगरानी में रहना होता हैं जब तक की गुर्दा सामान्य रूप से कार्य नहीं करने लगता ।
2.मरीज को धूल धुंए और प्रदूषण से बचनें की सलाह दी जाती हैं ,ताकि गुर्दा शरीर में सामान्य रूप से कार्य करता रहें ।
3.गुर्दे की शरीर द्वारा अस्वीकृति रोकने के लिये प्रतिरक्षादमनकारी दवाइयों को जीवनभर मरीज को लेना होता हैं ।
4.प्रत्यारोपण के बाद शराब तथा अन्य प्रकार के नशे को पूर्णत : बंद करना होता हैं ,अन्यथा गुर्दे की अस्वीकृति की समस्या पैदा हो सकती हैं ।
5.चोट,तनाव मरीज की आगे की जिन्दगी की गुणवत्ता प्रभावित करता हैं अत:इनसे बचने को कहा जाता हैं ।
6.समय - समय पर चिकित्सा जाँच करवाना आवश्यक हैं ।
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Note ::: गुर्दा प्रत्यारोपण के बारें में यह सामान्य जानकारी हैं ।जिसका अर्थ विशेषज्ञता को प्रतिस्थापित करना नहीं हैं।
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