नई दिल्ली ।।। केंद्र सरकार ने पिछले दिनों महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए देश भर में संचालित होंने वाले ऑनलाइन ई - फार्मेसी स्टोरों कों लाइसेंस लेना अनिवार्य कर दिया हैं ।
अब बिना लाइसेंस के दवाई बेचने वाली कंपनियों के नाम central drug standard control organization की वेबसाइट पर प्रदर्शित किये जायेंगे जिससे लोगों को अवेध तरीके से संचालित ई फार्मेसी को पहचानने में सहूलियत हों ।
सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त इन ई फार्मेसियों को विशेष लोगों दिये जायेंगे जिससे लोंगो को इन्हें पहचानने में परेशानी न हो ।
सवाल जो अनुत्तरित भी हैं
अब सवाल उठता हैं देश में ऑनलाइन दवा बाजार को नियंत्रित करना उचित हैं। एक बड़ा उपभोक्ता वर्ग हैं जो यह मानता हैं की ऑनलाइन दवा बाजार को नियंत्रित करना सरकार के अदूरदर्शी रवये को दर्शाता हैं क्योंकि सरकार अब तक देश के सुदूर अंचलो में बुनियादी स्वास्थ सुविधाओ के साथ सस्ती दवा उपलब्ध नही करवा पाई हैं।
यदि सरकार इस क्षेत्र को नियंत्रित करेगी तो इस क्षेत्र में कुछ बड़ी ई कामर्स कम्पनियों का अधिकार हो जायेगा जिससे छोटे स्टार्टअप टीक नही पाएँगे फलस्वरूप उपभोक्ताओं को बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ सकती हैं ।
एक अन्य सवाल यह उभर रहा हैं की टीवी चेनलों पर स्वास्थवर्धक दवाओं का भ्रामक मायाजाल फेल रहा हैं सरकार उसे नियंत्रित करने के बजाय जीवनदायी दवाओ को क्यों नियंत्रित करना चाह रही हैं । यदि नियंत्रित करना था तो उन दवाओ के कारोबार को नियंत्रित किया जा सकता हैं जो नशा करने से सम्बन्धित हैं ।
देश में ऑनलाइन दवा कारोबार इस समय लगभग 3 हजार करोड़ रूपये का हैं और कई स्टार्टअप दिशा में प्रयासरत जिससे की लोंगो को बेहतर गुणवत्ता और कम कीमत में दवाई उपलब्ध हों सके । दूसरी ओर केंद्र सरकार द्वारा स्थापित जप्रधानमन्त्री जन ओषधी केंद्र की रफ्तार बहुत धीमी हैं बीते सालो में देशभर में मात्र 3600 जन ओषधी केंद्र ही स्थापित हुए हैं । जो देश की बड़ी आबादी के सामने ऊंट के मुँह में जीरे के समान हैं ।
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