भोपाल ।।। मध्यप्रदेश समेत राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अगले कुछ माह में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला हैं । लेकिन इस बार चुनावी मैदान में उतरने की सबसे ज्यादा चर्चा बनी हुई हैं वह हैं ,सामान्य वर्ग,पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक संघठन यानि सपाक्स की ।
सपाक्स |
पिछले ढाई वर्षों में इस संघठन ने मध्यप्रदेश के विंध्य,मालवा,और महाकौशल क्षेत्रों में जिस तरह से लोकप्रियता अर्जित की हैं वह चोंकाने वाली हैं ।
पिछले ढाई साल में यह संघठन प्रदेश की सभी बड़ी और छोटी जगहों पर अपने सम्मेलन कर चुका हैं और लगभग सभी जगह इनके सम्मेलनों में हजारों की तादाद में लोग जुटे हैं ।
कई बुद्धिजीवी भी इस संघठन को खुला समर्थन दे चुके है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के पदोन्नति में आरक्षण सम्बंधित बयानों ने कर्मचारियों को इस संगठन के प्रति जागरूक कर दिया हैं । जबकि एट्रोसिटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध जाकर मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग ,पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के बाकी बचें खुचे लोगों को इस संगठन से जोड़कर रहीं सही कसर भी पूरी कर दी ।
संघठन के प्रांतीयअध्यक्ष और रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारी श्री हीरालाल त्रिवेदी कई मंचो से बोल चुके हैं कि संघठन आगामी विधानसभा चुनावों में अपने प्रत्याशी खड़े करेगा । यदि आगामी विधानसभा चुनावों में यह संगठन अपने प्रत्याशी खड़े करता हैं तो कांग्रेस और भाजपा दोनों को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता हैं । क्योंकि मालवा ,विंध्य और महाकौशल की 70 से ज्यादा सीटों पर संघठन से सम्बन्धित मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं । जहां संघठन अपने प्रत्याशी नहीं खडे करेगा वहाँ NOTA दबाने की बात संघठन के नेता मंचों से और सोशल मीडिया के जरिये कह रहे हैं । ऐसे में यदि इस वर्ग के मतदाता NOTA का विकल्प चुनते हैं तो यह स्थिति भी दोनों पार्टियों को परेशान कर सकती हैं क्योंकि कई सीटों पर पिछले चुनावों में विजेता प्रत्याशी जितने वोटों से चुनाव जीता था ,उससे ज़्यादा मत NOTA को मिले थे ।
कांग्रेस और भाजपा दोंनो पार्टियों के इन वर्गों से सम्बंधित नेता पार्टी स्तर पर अपने अपने वर्गों से उठ रहे विरोध को लेकर पार्टी नेतृत्व को आगाह कर चुके हैं ।
सपाक्स यदि आगामी चुनावों में अपने प्रत्याशी खड़े करता हैं तो कई चुनौती इस संगठन के सामने भी हैं जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में इस संगठन का प्रभाव कम है । पैसों की कमी इस संगठन के पास बनी हुई हैं । राजनीतिक अनुभव संघठन के नेताओं के पास नहीं हैं। काँग्रेस और भाजपा दोंनो इस संघठन को तोड़ने के नित नये हथकंडे अपना रहे हैं अपाक्स का गठन इसी की परिणीत हैं ।
अब देखना यह हैं कि आगामी चुनाव में सपाक्स बड़ी ताकत बन पाता हैं या नहीं ?
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